शायद अभी कमी सी मसीहाइयों में है
जो दर्द है वो रूह की गहराइयों में है
जिस को कभी ख़याल का पैकर न मिल सका
वो अक्स मेरे ज़ेहन की रानाइयों में है
(पैकर = देह, शरीर, आकृति, मुख), (अक्स = प्रतिबिम्ब, छाया, चित्र), (रानाई/ रअनाई = बनाव-श्रृंगार)
कल तक तो ज़िंदगी थी तमाशा बनी हुई
और आज ज़िंदगी भी तमाशाइयों में है
है किस लिए ये वुसअत-ए-दामान-ए-इल्तिफ़ात
दिल का सुकून तो इन्ही तन्हाइयों में है
(वुसअत-ए-दामान-ए-इल्तिफ़ात = प्यार/ कृपा का विस्तार)
ये दश्त-ए-आरज़ू है यहाँ एक एक दिल
तुझ को ख़बर भी है तिरे सौदाइयों में है
(दश्त-ए-आरज़ू = तमन्ना/ ख़्वाहिश का जंगल), (सौदाई = पागल, बावला)
तन्हा नहीं है ऐ शब-ए-गिर्यां दिए की लौ
यादों की एक शाम भी परछाइयों में है
(शब-ए-गिर्यां = दुःख/ रोने की रात)
'गुलनार' मस्लहत की ज़बाँ में न बात कर
वो ज़हर पी के देख जो सच्चाइयों में है
(मस्लहत = समझदारी, हित, भलाई)
-गुलनार आफ़रीन
जो दर्द है वो रूह की गहराइयों में है
जिस को कभी ख़याल का पैकर न मिल सका
वो अक्स मेरे ज़ेहन की रानाइयों में है
(पैकर = देह, शरीर, आकृति, मुख), (अक्स = प्रतिबिम्ब, छाया, चित्र), (रानाई/ रअनाई = बनाव-श्रृंगार)
कल तक तो ज़िंदगी थी तमाशा बनी हुई
और आज ज़िंदगी भी तमाशाइयों में है
है किस लिए ये वुसअत-ए-दामान-ए-इल्तिफ़ात
दिल का सुकून तो इन्ही तन्हाइयों में है
(वुसअत-ए-दामान-ए-इल्तिफ़ात = प्यार/ कृपा का विस्तार)
ये दश्त-ए-आरज़ू है यहाँ एक एक दिल
तुझ को ख़बर भी है तिरे सौदाइयों में है
(दश्त-ए-आरज़ू = तमन्ना/ ख़्वाहिश का जंगल), (सौदाई = पागल, बावला)
तन्हा नहीं है ऐ शब-ए-गिर्यां दिए की लौ
यादों की एक शाम भी परछाइयों में है
(शब-ए-गिर्यां = दुःख/ रोने की रात)
'गुलनार' मस्लहत की ज़बाँ में न बात कर
वो ज़हर पी के देख जो सच्चाइयों में है
(मस्लहत = समझदारी, हित, भलाई)
-गुलनार आफ़रीन
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