बहसें फिजूल थीं यह खुला हाल देर में
अफ्सोस उम्र कट गई लफ़्ज़ों के फेर में
छूटा अगर मैं गर्दिश-ए-तस्बीह से तो क्या
अब पड़ गया हूँ आपकी बातों के फेर में
(गर्दिश-ए-तस्बीह = माला जपना)
-अकबर इलाहाबादी
अफ्सोस उम्र कट गई लफ़्ज़ों के फेर में
छूटा अगर मैं गर्दिश-ए-तस्बीह से तो क्या
अब पड़ गया हूँ आपकी बातों के फेर में
(गर्दिश-ए-तस्बीह = माला जपना)
-अकबर इलाहाबादी
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