Monday, January 29, 2018

बहसें फिजूल थीं यह खुला हाल देर में
अफ्सोस उम्र कट गई लफ़्ज़ों के फेर में

छूटा अगर मैं गर्दिश-ए-तस्बीह से तो क्या
अब पड़ गया हूँ आपकी बातों के फेर में

(गर्दिश-ए-तस्बीह = माला जपना)


-अकबर इलाहाबादी

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