Friday, February 15, 2019

वो टूटते हुए रिश्तों का हुस्न-ए-आख़िर था
कि चुप सी लग गई दोनों को बात करते हुए

अजब नज़ारा था बस्ती का उस किनारे पर
सभी बिछड़ गए दरिया से पार उतरते हुए

-राजेन्द्र मनचंदा बानी

(हुस्न-ए-आख़िर = परम सौंदर्य)

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