वो टूटते हुए रिश्तों का हुस्न-ए-आख़िर था
कि चुप सी लग गई दोनों को बात करते हुए
अजब नज़ारा था बस्ती का उस किनारे पर
सभी बिछड़ गए दरिया से पार उतरते हुए
-राजेन्द्र मनचंदा बानी
(हुस्न-ए-आख़िर = परम सौंदर्य)
कि चुप सी लग गई दोनों को बात करते हुए
अजब नज़ारा था बस्ती का उस किनारे पर
सभी बिछड़ गए दरिया से पार उतरते हुए
-राजेन्द्र मनचंदा बानी
(हुस्न-ए-आख़िर = परम सौंदर्य)
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