कौन उठाएगा तुम्हारी ये जफ़ा मेरे बाद
याद आएगी बहुत मेरी वफ़ा मेरे बाद
(जफ़ा = सख्ती, जुल्म, अत्याचार)
है वसीयत मेरी मरक़द पे ये लिख दे अहबाब
के करे कोई किसी से न वफ़ा मेरे बाद
(मरक़द = कब्र), (अहबाब = स्वजन, दोस्त, मित्र)
शुक्र है कुछ तो मुहब्बत में हुआ रंग-ए-असर
तीन दिन उसने लगाई न हिना मेरे बाद
खूं मेरा करके बहुत हाथ मले क़ातिल ने
न जमा पर न जमा रंग-ए-हिना मेरे बाद
-अमीर मीनाई
याद आएगी बहुत मेरी वफ़ा मेरे बाद
(जफ़ा = सख्ती, जुल्म, अत्याचार)
है वसीयत मेरी मरक़द पे ये लिख दे अहबाब
के करे कोई किसी से न वफ़ा मेरे बाद
(मरक़द = कब्र), (अहबाब = स्वजन, दोस्त, मित्र)
शुक्र है कुछ तो मुहब्बत में हुआ रंग-ए-असर
तीन दिन उसने लगाई न हिना मेरे बाद
खूं मेरा करके बहुत हाथ मले क़ातिल ने
न जमा पर न जमा रंग-ए-हिना मेरे बाद
-अमीर मीनाई
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