Saturday, April 13, 2019

मुझी में गूँज रही है मिरे सुख़न की सदा
नवा-ए-गर्म हूँ मैं दश्त-ए-बे-ज़बान में हूँ

(शायरी, कविता, बातें), (सदा = आवाज़), (नवा-ए-गर्म = उत्साहित आवाज़/ गीत), (दश्त-ए-बे-ज़बान = बिना आवाज़ का रेगिस्तान/ जंगल)

'अदीम' बैठा हुआ हूँ परों के ढेर पे मैं
ख़ुश इस तरह हूँ कि जैसे किसी उड़ान में हूँ

-अदीम हाशमी

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