Wednesday, June 19, 2019

बस नफ़ा ही नफ़ा है ख़सारा नहीं

बस नफ़ा ही नफ़ा है ख़सारा नहीं
इश्क़ के खेल में कोई हारा नहीं।

(ख़सारा = हानि, घाटा, नुक्सान)

दिल पे क़ायम है तेरी हुकूमत अभी
हमने यादों का परचम उतारा नहीं।

कौन उतरा है उस पार अब तक यहाँ
इश्क़ के इस भंवर में किनारा नहीं।

मुंतज़िर हम रहे कोई आवाज़ दे
हमको लेकिन किसी ने पुकारा नहीं।

 (मुंतज़िर = प्रतीक्षारत)

फूल थे ख़ार समझे गए हम सदा
बागबां ने भी हमको दुलारा नहीं।

कौन रखता यूं आँखों में काजल मेरी
मैं किसी आँख का भी तो तारा नहीं।

फिर भले सर कटे सच की ख़ातिर तो क्या
पर मुकरना तो मुझको गवारा नहीं।

- विकास वाहिद
१८/०६/२०१९

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