हर एक शख़्स ख़फ़ा मुझ से अंजुमन में था
कि मेरे लब पे वही था जो मेरे मन में था
(अंजुमन = सभा, महफ़िल)
कसक उठी थी कुछ ऐसी कि चीख़ चीख़ पड़ूँ
रहा मैं चुप ही कि बहरों की अंजुमन में था
उलझ के रह गई जामे की दिलकशी में नज़र
उसे किसी ने न देखा जो पैरहन में था
(जामे = पोशाक), (पैरहन = लिबास, वस्त्र)
कभी मैं दश्त में आवारा इक बगूला सा
कभी मैं निकहत-ए-गुल की तरह चमन में था
(दश्त = जंगल), (बगूला = बवंडर, चक्रवात), (निकहत-ए-गुल = गुलाब की खुशबू)
मैं उस को क़त्ल न करता तो ख़ुद-कुशी करता
वो इक हरीफ़ की सूरत मिरे बदन में था
(हरीफ़ = प्रतिद्वंदी, विरोधी)
उसी को मेरे शब-ओ-रोज़ पर मुहीत न कर
वो एक लम्हा-ए-कमज़ोर जो गहन में था
(शब-ओ-रोज़ = रात और दिन), (मुहीत = आच्छादित, छाया हुआ, व्यापक, फैला हुआ), (गहन = ग्रहण)
मिरी सदा भी न मुझ को सुनाई दी 'साबिर'
कुछ ऐसा शोर बपा सहन-ए-अंजुमन में था
(सदा = आवाज़), ( सहन-ए-अंजुमन = महफ़िल का आँगन)
-नो-बहार सिंह "साबिर"
कि मेरे लब पे वही था जो मेरे मन में था
(अंजुमन = सभा, महफ़िल)
कसक उठी थी कुछ ऐसी कि चीख़ चीख़ पड़ूँ
रहा मैं चुप ही कि बहरों की अंजुमन में था
उलझ के रह गई जामे की दिलकशी में नज़र
उसे किसी ने न देखा जो पैरहन में था
(जामे = पोशाक), (पैरहन = लिबास, वस्त्र)
कभी मैं दश्त में आवारा इक बगूला सा
कभी मैं निकहत-ए-गुल की तरह चमन में था
(दश्त = जंगल), (बगूला = बवंडर, चक्रवात), (निकहत-ए-गुल = गुलाब की खुशबू)
मैं उस को क़त्ल न करता तो ख़ुद-कुशी करता
वो इक हरीफ़ की सूरत मिरे बदन में था
(हरीफ़ = प्रतिद्वंदी, विरोधी)
उसी को मेरे शब-ओ-रोज़ पर मुहीत न कर
वो एक लम्हा-ए-कमज़ोर जो गहन में था
(शब-ओ-रोज़ = रात और दिन), (मुहीत = आच्छादित, छाया हुआ, व्यापक, फैला हुआ), (गहन = ग्रहण)
मिरी सदा भी न मुझ को सुनाई दी 'साबिर'
कुछ ऐसा शोर बपा सहन-ए-अंजुमन में था
(सदा = आवाज़), ( सहन-ए-अंजुमन = महफ़िल का आँगन)
-नो-बहार सिंह "साबिर"
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