Monday, June 3, 2019

बुझ गया दिल तो ख़बर कुछ भी नहीं

बुझ गया दिल तो ख़बर कुछ भी नहीं
अक्स-ए-आईने नज़र कुछ भी नहीं

(अक्स-ए-आईने = आईने का प्रतिबिम्ब)

शब की दीवार गिरी तो देखा
नोक-ए-नश्तर है सहर कुछ भी नहीं

(शब = रात), (सहर = सुबह), (नश्तर= शल्य क्रिया/ चीर-फाड़ करने वाला छोटा चाकू), (नोक-ए-नश्तर = चाकू की नोक)

जब भी एहसास का सूरज डूबे
ख़ाक का ढेर बशर कुछ भी नहीं

(बशर = इंसान)

एक पल ऐसा कि दुनिया बदले
यूँ तो सदियों का सफ़र कुछ भी नहीं

हर्फ़ को बर्ग-ए-नवा देता हूँ
यूँ मिरे पास हुनर कुछ भी नहीं

(हर्फ़ = अक्षर), (नवा = गीत, आवाज़, शब्द), (बर्ग = पत्ती), (बर्ग-ए-नवा = आवाज़ की पत्ती, Leaf of voice)

-खलील तनवीर

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