Tuesday, August 20, 2019

दुई का तज़्किरा तौहीद में, पाया नहीं जाता

दुई का तज़्किरा तौहीद में, पाया नहीं जाता
जहाँ मेरी रसाई है, मिरा साया नहीं जाता

(दुई = दो का भाव, द्वैत), (तज़्किरा = चर्चा, बातचीत), (तौहीद = ईश्वर को एक मानना), (रसाई = पहुंच)

मिरे टूटे हुए पा-ए-तलब का, मुझ पे एहसाँ है
तुम्हारे दर से उठ कर अब कहीं, जाया नहीं जाता

(पा-ए-तलब = इच्छा रूपी पैर)

मोहब्बत हो तो जाती है, मोहब्बत की नहीं जाती
ये शोअ'ला ख़ुद भड़क उठता है, भड़काया नहीं जाता

फ़क़ीरी में भी मुझ को माँगने से, शर्म आती है
सवाली हो के मुझ से हाथ, फैलाया नहीं जाता

चमन तुम से इबारत है, बहारें तुम से ज़िंदा हैं
तुम्हारे सामने फूलों से, मुरझाया नहीं जाता

(इबारत = शब्द-चित्रण, प्रतीक)

मोहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल, मख़्सूस होते हैं
ये वो नग़्मा है जो हर साज़ पर, गाया नहीं जाता

(मख़्सूस = विशिष्ट, ख़ास)

मोहब्बत अस्ल में 'मख़मूर', वो राज़-ए-हक़ीक़त है
समझ में आ गया है फिर भी, समझाया नहीं जाता

- "मख़मूर" देहलवी

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