रुस्वा हुए ज़लील हुए दर-ब-दर हुए
हक़ बात लब पे आई तो हम बे-हुनर हुए
कल तक जहाँ में जिन को कोई पूछता न था
इस शहर-ए-बे-चराग़ में वो मो'तबर हुए
(मो'तबर =विश्वसनीय, भरोसेमंद)
बढ़ने लगी हैं और ज़मानों की दूरियाँ
यूँ फ़ासले तो आज बहुत मुख़्तसर हुए
(मुख़्तसर = थोड़ा, कम, संक्षिप्त)
दिल के मकाँ से ख़ौफ़ के साए न छट सके
रस्ते तो दूर दूर तलक बे-ख़तर हुए
(बे-ख़तर = बिना ख़तरे के, सुरक्षित)
अब के सफ़र में दर्द के पहलू अजीब हैं
जो लोग हम-ख़याल न थे हम-सफ़र हुए
बदला जो रंग वक़्त ने मंज़र बदल गए
आहन-मिसाल लोग भी ज़ेर-ओ-ज़बर हुए
(आहन-मिसाल = लोहे की तरह), (ज़ेर-ओ-ज़बर = ज़माने का उलट-फेर, संसार की ऊँच-नीच)
-खलील तनवीर
हक़ बात लब पे आई तो हम बे-हुनर हुए
कल तक जहाँ में जिन को कोई पूछता न था
इस शहर-ए-बे-चराग़ में वो मो'तबर हुए
(मो'तबर =विश्वसनीय, भरोसेमंद)
बढ़ने लगी हैं और ज़मानों की दूरियाँ
यूँ फ़ासले तो आज बहुत मुख़्तसर हुए
(मुख़्तसर = थोड़ा, कम, संक्षिप्त)
दिल के मकाँ से ख़ौफ़ के साए न छट सके
रस्ते तो दूर दूर तलक बे-ख़तर हुए
(बे-ख़तर = बिना ख़तरे के, सुरक्षित)
अब के सफ़र में दर्द के पहलू अजीब हैं
जो लोग हम-ख़याल न थे हम-सफ़र हुए
बदला जो रंग वक़्त ने मंज़र बदल गए
आहन-मिसाल लोग भी ज़ेर-ओ-ज़बर हुए
(आहन-मिसाल = लोहे की तरह), (ज़ेर-ओ-ज़बर = ज़माने का उलट-फेर, संसार की ऊँच-नीच)
-खलील तनवीर
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