Wednesday, April 15, 2020

जो कुछ हो सुनाना उसे बेशक़ सुनाइये

जो कुछ हो सुनाना उसे बेशक़ सुनाइये
तकरीर ही करनी हो कहीं और जाइये

(तक़रीर = वार्तालाप, बातचीत, भाषण, वक्तव्य, बयान, वाद-विवाद, हुज्जत)

याँ महफ़िले-सुखन को सुखनवर की है तलाश
गर शौक़ आपको भी है तशरीफ़ लाइये।

(सुख़नवर = कवि, शायर)

फूलों की ज़िन्दगी तो फ़क़त चार दिन की है
काँटे चलेंगे साथ इन्हे आज़माइये।

क‍उओं की गवाही पे हुई हंस को फाँसी
जम्हूरियत है मुल्क में ताली बजाइये।

(जम्हूरियत = गणतंत्र, जनतंत्र, प्रजातंत्र)

रुतबे को उनके देख के कुछ सीखिये 'अमित'
सच का रिवाज ख़त्म है अब मान जाइये।

-अमिताभ त्रिपाठी ’अमित’ 

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