कभी उजालों की सम्त माइल कभी अंधेरों में खो रहा हूँ
तुझे बिखरने से क्या बचाऊँ मैं ख़ुद भी तक़्सीम हो रहा हूँ
-इक़बाल अशहर
(सम्त = तरफ़, ओर),(माइल =आकर्षित, आसक्त), (तक़्सीम = बाँटने की क्रिया या भाव, बँटाई)
तुझे बिखरने से क्या बचाऊँ मैं ख़ुद भी तक़्सीम हो रहा हूँ
-इक़बाल अशहर
(सम्त = तरफ़, ओर),(माइल =आकर्षित, आसक्त), (तक़्सीम = बाँटने की क्रिया या भाव, बँटाई)
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