Friday, July 31, 2020

एक बरसात की खुश्बू में कई यादें हैं
जिस तरह सीप के सीने गुहर होता है
जिस तरह रात के रानी की महक होती है
जिस तरह साँझ की वंशी का असर होता है

जिस तरह उठता है आकाश में इक इंद्रधनुष
जैसे पीपल के तले कोई दिया जलता है
जैसे मंदिर में कहीं दूर घंटियाँ बजतीं
जिस तरह भोर के पोखर में कमल खिलता है

जिस तरह खुलता हो सन्दूक पुराना कोई
जिस तरह उसमें से ख़त कोई पुराना निकले
जैसे खुल जाय कोई चैट की खिड़की फिर से
ख़ुद-बख़ुद जैसे कोई मुँह से तराना निकले

जैसे खँडहर में बची रह गयी बुनियादें हैं
एक बरसात की खुश्बू में कई यादें हैं

-अमिताभ त्रिपाठी 'अमित'

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