इसके ज़्यादा उसके कम
सबके अपने अपने ग़म।
ज़ख़्म उसी ने बख़्शे हैं
जिसको बख़्शा था मरहम।
जो लिक्खा है वो होगा
पन्ना पहनो या नीलम।
हाय, तबस्सुम चेहरे पर
फूल पे हो जैसे शबनम।
(तबस्सुम = मुस्कराहट), (शबनम = ओस)
साँसों तक का झगड़ा फिर
कैसी ख़ुशियाँ, क्या मातम।
सुब्ह तलक जो जलना था
रक्खी अपनी लौ मद्धम।
आँखें कितनी पागल हैं
अक्सर बरसीं बे-मौसम।
इक मौसम में बारिश के
यादों के कितने मौसम।
ख़्वाहिश अब तक ज़िंदा है
जिस्म पड़ा है पर बेदम।
- विकास वाहिद
waah kya baat hai...!!
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