कर लूंगा जमा दौलत-ओ-ज़र उस के बाद क्या
ले लूँगा शानदार सा घर उस के बाद क्या
(ज़र = धन-दौलत, रुपया-पैसा)
मय की तलब जो होगी तो बन जाऊँगा मैं रिन्द
कर लूंगा मयकदों का सफ़र उस के बाद क्या
(रिन्द = शराबी)
होगा जो शौक़ हुस्न से राज़-ओ-नियाज़ का
कर लूंगा गेसुओं में सहर उस के बाद क्या
(राज़-ओ-नियाज़ = राज़ की बातें, परिचय, मुलाक़ात), (गेसुओं =ज़ुल्फ़ें, बाल), (सहर = सुबह)
शे'र-ओ-सुख़न की ख़ूब सजाऊँगा महफ़िलें
दुनिया में होगा नाम मगर उस के बाद क्या
(शे'र-ओ-सुख़न = काव्य, Poetry)
मौज आएगी तो सारे जहाँ की करूँगा सैर
वापस वही पुराना नगर उस के बाद क्या
इक रोज़ मौत ज़ीस्त का दर खटखटाएगी
बुझ जाएगा चराग़-ए-क़मर उस के बाद क्या
(ज़ीस्त = जीवन), (चराग़-ए-क़मर = जीवन का चराग़)
उठी थी ख़ाक, ख़ाक से मिल जाएगी वहीं
फिर उस के बाद किस को ख़बर उस के बाद क्या
-ओम प्रकाश भंडारी "क़मर" जलालाबादी
वाह जिंदाबाद
ReplyDeleteoho kya baat
ReplyDeleteUmda
ReplyDeleteThis really hits.
ReplyDeleteIs kavita k bad insan wah karne se pehle is ki gehrai me utar jata hai.
बेहतरीन
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