नहीं हम में कोई अनबन नहीं है
बस इतना है की अब वो मन नहीं है।
बस इतना है की अब वो मन नहीं है।
मैं अपने आपको सुलझा रहा हूँ,
उन्हें लेकर कोई उलझन नहीं है।
मुझे वो गैर भी क्यूँ कह रहे हैं,
भला क्या ये भी अपनापन नहीं है।
किसी के मन को भी दिखला सके जो
कहीं ऐसा कोई दर्पण नहीं है।
मैं अपने दोस्तों के सदके लेकिन
मेरा क़ातिल कोई दुश्मन नहीं है।
-मंगल 'नसीम'
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