mir-o-ghalib
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Spiritual Science
Saturday, September 29, 2012
कितना
आसाँ
था
तेरे
हिज्र
में
मरना
जानाँ
फिर
भी
इक
उम्र
लगी
जान
से
जाते
जाते
-
अहमद
फ़राज़
(
हिज्र
=
बिछोह
,
जुदाई
)
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