Saturday, October 6, 2012

रौशनी का सुराग़ गायब है
रास्ते का चिराग़ गायब है

आज सब से बड़ा ज़हीन है वो
जिस के सर से दिमाग़ गायब है
उम्र जिन की गुनाह में गुज़री
उन के दामन से दाग़ गायब है

रह रहे हैं मशीनी दौर में हम
ज़िंदगी से फ़राग़ गायब है
(फ़राग़ = निश्चिंतता, बेफिक्री)
 
तश्ना लब हैं तमाम बादा कश
मयकदे से अयाग़ गायब है
[(तश्ना लब = प्यासे होंट); (अयाग़ = प्याला)]

हर तरफ़ हैं ग़नीम सफ़-बस्ता
दोस्तों का सुराग़ गायब है
[(ग़नीम = दुश्मन); (सफ़-बस्ता = कतारबन्द)]
 
किस की जादूगरी है ये 'रहबर`
फल तो हाज़िर हैं बाग़ गायब है
- राजेन्द्र नाथ ‘रहबर’

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