Friday, October 5, 2012

उसने सुकूत-ए-शब् में भी अपना पयाम रख दिया
हिज्र की रात बाम पर माह-ए-तमाम रख दिया


[(सुकूत-ए-शब् = रात की ख़ामोशी); (पयाम = सन्देश); (हिज्र = बिछोह, जुदाई); (बाम = छत); (माह-ए-तमाम = पूनम का चाँद)]

आमद-ए-दोस्त की नवीद कू-ए-वफ़ा में आम थी
मैंने भी इक चिराग सा दिल सर-ए-शाम रख दिया

[आमद-ए-दोस्त = दोस्त का आगमन ; (नवीद = अच्छी खबर); (कू-ए-वफ़ा = वफ़ा की गली); (सर-ए-शाम = शाम होने पर)]

शिद्दत-ए-तश्नगी में भी गैरत-ए-मयकशी रही
उसने जो फेर ली नज़र मैंने भी जाम रख दिया

[शिद्दत-ए-तश्नगी = प्यास की तीव्रता]

देखो ये मेरे ख्वाब थे, देखो ये मेरे ज़ख्म हैं
मैंने तो सब हिसाब-ए-जां बर-सर-ए-आम रख दिया

[(हिसाब-ए-जां = ज़िन्दगी का हिसाब); (सर-ए-आम = सब के सामने)]

उसने नज़र नज़र में ही ऐसे भले सुखन कहे
मैंने तो उसके पांव में सारा कलाम रख दिया

[सुखन = कथन, कविता]

और 'फ़राज़' चाहिए कितनी मुहब्बतें तुझे
की माओं ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रख दिया
-अहमद फ़राज़

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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं

सुना है रब्त है उसको ख़राब-हालों से
सो अपने आप को बर्बाद कर के देखते हैं

[रब्त = सम्बन्ध, मेल]

सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उसकी
सो हम भी उसकी गली से गुज़र के देखते हैं

[(गाहक = खरीददार); (चश्म-ए-नाज़ = गर्वीली आँखें)]

सुना है उसको भी है शेर-ओ-शायरी से शगफ़
सो हम भी मोइज़े अपने हुनर के देखते हैं

[(शगफ़ = जूनून, धुन); (मोइज़े = जादू)]

सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं

सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है
सितारे बाम-ए-फलक से उतर के देखते हैं

(बाम-ए-फलक = आसमान की छत)

सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं
सुना है रात को जुगनूं ठहर के देखते हैं

सुना है रात से बढ़ कर है काकुलें उसकी
सुना है शाम को साये गुज़र के देखते हैं

[काकुलें = जुल्फें]

सुना है हश्र है उसकी ग़ज़ाल सी आँखें
सुना है उसको हिरन दश्तभर के देखते हैं

[(हश्र = क़यामत); (ग़ज़ाल = हिरन); (दश्तभर = पूरा जंगल)]

सुना है उस की स्याह चश्मगी क़यामत है
सो उसको सुरमाफ़रोश आँख भर के देखते हैं

[स्याह चश्मगी = काली आँखें; (सुरमाफ़रोश = काजल बेचने वाले)]

सुना है उसके लबों से गुलाब जलते हैं
सो हम बहार पे इलज़ाम धर के देखते हैं

सुना है आइना तमसाल है ज़बीं उसकी
जो सादादिल हैं उसे बन संवर के देखते हैं

[(तमसाल = मिसाल, उपमा); (ज़बीं = माथा); (सादादिल = साफ़ दिल वाले)]

सुना है उसके बदन की तराश ऐसी है
की फूल अपनी कबायें क़तर के देखते हैं

[कबायें = कपड़े]

बस इक निगाह में लुटता है काफ़िला दिल का
सो रह-रवां-ए-तमन्ना भी डर के देखते हैं

[रह-रवां-ए-तमन्ना = राहगीरों की तमन्ना]

सुना है उसके सबिस्तां से मुत्तसिल है बहिश्त
मकीं उधर के भी जलवे इधर के देखते हैं

[(सबिस्तां = शयनकक्ष); (मुत्तसिल = पास, बगल में); (बहिश्त = स्वर्ग); (मकीं = किरायेदार)]

किसे नसीब के बे-पैरहन उसे देखे
कभी कभी दर-ओ-दीवार घर के देखते हैं

[(बे-पैरहन = बिना कपड़ो के); (दर-ओ-दीवार = दरवाज़े और खिड़कियाँ)]

रुकें तो गर्दिशें उसका तवाफ़ करती हैं
चलें तो उसको ज़माने ठहर के देखते हैं

[गर्दिशें = विपत्ति; तवाफ़ = प्रदक्षिणा]

कहानियाँ ही सही, सब मुबालगे ही सही
अगर ये ख़्वाब है, ताबीर कर के देखते हैं

[(मुबालगे = अत्त्युक्ति, बहुत बढ़ा चढ़ा कर कही हुई बात); (ताबीर = परिणाम, फल) ]

अब उसके शहर में ठहरें कि कूच कर जाएँ
'फ़राज़' आओ सितारे सफ़र के देखते हैं

-अहमद फ़राज़

Source:http://gunche.blogspot.in/

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