Tuesday, December 25, 2012

कहीं पनघटों की डगर नहीं, कहीं आँचलों का नगर नहीं
ये पहाड़ धूप के पेड़ हैं, कोई सायादार शज़र नहीं। 
(शज़र = पेड़)

वो बिका है कितने करोड़ में, ज़रा उसका हाल बताइये
कोई शख्स भूख से मर गया, ये ख़बर तो कोई ख़बर नहीं।

मैं वहां से आया हूँ आज भी जहाँ प्यार दिल का चराग़ है
ये अजीब रात का शहर है, कहीं रौशनी का गुज़र नहीं।

कोई 'मीर' हो के 'बशीर' हो, जो तुम्हारे नाज़ उठायें हम
ये 'ज़फ़र' की दिल्ली है बा अदब यहाँ हर किसी का गुज़र नहीं।
-बशीर बद्र

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