Thursday, December 27, 2012

जब भी चिड़ियों को बुलाकर प्यार से दाने दिए,
इस नई तहज़ीब ने इस पर कई ताने दिए।

जिन उजालों ने किया अंधी गुफ़ाओं से रिहा,
बेड़ियाँ पहनाके हमने उनको तहख़ाने दिए।

हमने माँगी थी ज़रा-सी रोशनी घर के लिए,
आपने जलती हुई बस्ती के नज़राने दिए।

हादसे ऐसे भी गुज़रे उनके मेरे दरमियाँ,
लब रहे ख़ामोश और आँखों ने अफ़साने दिए।

ज़िंदगी खुशबू से अब तक इसलिए महरूम है,
हमने जिस्मों को चमन, रूहों को वीराने दिए।

आस्मानों को भी सजदों के लिए झुकना पड़ा,
वो भी क्या सदियाँ थीं, जिनने ऐसे दीवाने दिए।

ज़िंदगी चादर है, धुलके साफ़ हो जायेगी फिर,
इसलिए हमने भी इसमें दाग़ लग जाने दिए।

हाथ में तेज़ाब के फ़ाहे थे मरहम की जगह,
दोस्तों ने कब हमारे ज़ख़्म मुरझाने दिए।

ज़िंदगी का ग़म नहीं, ग़म है हमें इस बात का,
उनने मुर्दे भी नहीं, क़ब्रों में दफ़नाने दिए।
-माणिक वर्मा

No comments:

Post a Comment