आँखें मुझे तल्वों से वो मलने नहीं देते,
अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते।
ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते,
सच है कि हमीं दिल को संभलने नहीं देते।
किस नाज़ से कहते हैं वो झुंझला के शब-ए-वस्ल,
तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते।
परवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोले,
क्यों हम को जलाते हो कि जलने नहीं देते।
हैरान हूँ किस तरह करूँ अर्ज़-ए-तमन्ना,
दुश्मन को तो पहलू से वो टलने नहीं देते।
दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त,
हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते।
गर्मी-ए-मोहब्बत में वो है आह से माने,
पंखा नफ़स-ए-सर्द का झलने नहीं देते।
-अकबर इलाहाबादी
अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते।
ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते,
सच है कि हमीं दिल को संभलने नहीं देते।
किस नाज़ से कहते हैं वो झुंझला के शब-ए-वस्ल,
तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते।
परवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोले,
क्यों हम को जलाते हो कि जलने नहीं देते।
दुश्मन को तो पहलू से वो टलने नहीं देते।
दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त,
हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते।
गर्मी-ए-मोहब्बत में वो है आह से माने,
पंखा नफ़स-ए-सर्द का झलने नहीं देते।
-अकबर इलाहाबादी
No comments:
Post a Comment