दुख के मुका़बिल खड़े हुए हैं
हम गुर्बत में बड़े हुए हैं (गुर्बत = दरिद्रता, कंगाली)
मेरी मुस्कानों के नीचे
ग़म के खज़ाने गड़े हुए हैं
जीवन वो ज़ेवर है, जिसमें
अश्क के मोती जड़े हुए हैं
जा पहुँचा मंज़िल पे ज़माना
हम सोचों में पड़े हुए हैं
दुनिया की अपनी इक ज़िद है
हम अपनी पर अड़े हुए हैं
कुछ दुख हम लेकर आए थे
कुछ अपने ही गढ़े हुए हैं
जो ख़त वो लिखने वाला है
वो ख़त मेरे पढ़े हुए हैं
-राजेश रेड्डी
हम गुर्बत में बड़े हुए हैं (गुर्बत = दरिद्रता, कंगाली)
मेरी मुस्कानों के नीचे
ग़म के खज़ाने गड़े हुए हैं
जीवन वो ज़ेवर है, जिसमें
अश्क के मोती जड़े हुए हैं
जा पहुँचा मंज़िल पे ज़माना
हम सोचों में पड़े हुए हैं
दुनिया की अपनी इक ज़िद है
हम अपनी पर अड़े हुए हैं
कुछ दुख हम लेकर आए थे
कुछ अपने ही गढ़े हुए हैं
जो ख़त वो लिखने वाला है
वो ख़त मेरे पढ़े हुए हैं
-राजेश रेड्डी
No comments:
Post a Comment