Wednesday, March 6, 2013

कालेज के सब लड़के चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिये,
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है।

फूलों की खुशबू लूटी है, तितली के पर नोचे हैं,
ये रहज़न का काम नहीं है, रहबर की मक़्क़ारी है।

(रहज़न = डाकू, लुटेरा), (रहबर = रास्ता दिखाने वाला, पथप्रदर्शक)

अब फिरते हैं हम रिश्तों के रंग-बिरंगे ज़ख्म लिये,
सबसे हँस कर मिलना-जुलना बहुत बड़ी बीमारी है।

कश्ती पर आँच आ जाये तो हाथ कलम करवा देना,
लाओ मुझे पतवारें दे दो, मेरी ज़िम्मेदारी है।

(कश्ती = नाव)

-राहत इन्दौरी

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