कोई इक तिशनगी कोई समुन्दर लेके आया है
जहाँ मे हर कोई अपना मुकद्दर लेके आया है
तबस्सुम उसके होठों पर है उसके हाथ में गुल है
मगर मालूम है मुझको वो ख़ंजर लेके आया है
तेरी महफ़िल से दिल कुछ और तनहा होके लौटा है
ये लेने क्या गया था और क्या घर लेके आया है
बसा था शहर में बसने का इक सपना जिन आँखों में
वो उन आँखों मे घर जलने का मंज़र लेके आया है
न मंज़िल है न मंज़िल की है कोई दूर तक उम्मीद
ये किस रस्ते पे मुझको मेरा रहबर लेके आया है
-राजेश रेड्डी
जहाँ मे हर कोई अपना मुकद्दर लेके आया है
तबस्सुम उसके होठों पर है उसके हाथ में गुल है
मगर मालूम है मुझको वो ख़ंजर लेके आया है
तेरी महफ़िल से दिल कुछ और तनहा होके लौटा है
ये लेने क्या गया था और क्या घर लेके आया है
बसा था शहर में बसने का इक सपना जिन आँखों में
वो उन आँखों मे घर जलने का मंज़र लेके आया है
न मंज़िल है न मंज़िल की है कोई दूर तक उम्मीद
ये किस रस्ते पे मुझको मेरा रहबर लेके आया है
-राजेश रेड्डी
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