मुहाफिज़ बहारों के सोते रहे,
गुलों के जिगर चाक होते रहे।
[(मुहाफिज़ = रक्षक), (गुल = फूल)]
तमन्नाएँ हर दिल को डसती रहीं,
ख़यालात नश्तर चुभोते रहे।
गुलिस्तां में खिलते रहे गुल कई,
मगर लोग काँटों पे सोते रहे।
जो हँसते थे हँसते रहे उम्र भर,
जो रोते थे रोते के रोते रहे।
इधर ज़ब्त की बात चलती रही,
उधर वार पर वार होते रहे।
वही आज मंज़िल के मालिक बने,
जो कांटे सरे राह बोते रहे।
गिरेबां के तारों में अहले-जुनूं,
मुहब्बत की कलियाँ पिरोते रहे।
(अहले-जुनूं = जूनून वाले लोग)
'कँवल' पारसाने-जहाँ ख़ून से,
गुनाहों के धब्बों को धोते रहे।
(पारसाने-जहाँ = दुनिया के सदाचारी/ संयमी लोग)
-कँवल ज़ियाई
गुलों के जिगर चाक होते रहे।
[(मुहाफिज़ = रक्षक), (गुल = फूल)]
तमन्नाएँ हर दिल को डसती रहीं,
ख़यालात नश्तर चुभोते रहे।
गुलिस्तां में खिलते रहे गुल कई,
मगर लोग काँटों पे सोते रहे।
जो हँसते थे हँसते रहे उम्र भर,
जो रोते थे रोते के रोते रहे।
इधर ज़ब्त की बात चलती रही,
उधर वार पर वार होते रहे।
वही आज मंज़िल के मालिक बने,
जो कांटे सरे राह बोते रहे।
गिरेबां के तारों में अहले-जुनूं,
मुहब्बत की कलियाँ पिरोते रहे।
(अहले-जुनूं = जूनून वाले लोग)
'कँवल' पारसाने-जहाँ ख़ून से,
गुनाहों के धब्बों को धोते रहे।
(पारसाने-जहाँ = दुनिया के सदाचारी/ संयमी लोग)
-कँवल ज़ियाई
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