Friday, April 5, 2013

ज़माना अपने मुनाफ़े में क्यों शरीक करे,
उधर गया मैं जिधर वक़्त का बहाव न था।

मैं जी रहा हूँ कि रिश्ता है तल्ख़ियों से मेरा,
वो मर गया है कि उसे ज़हर से लगाव न था।
-ज़फ़र गोरखपुरी

(तल्ख़ियों = कड़वाहटों)

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