Thursday, April 4, 2013

हँस के दुनिया में मरा कोई, कोई रो के मरा,
ज़िन्दगी पाई मगर उसने, जो कुछ हो के मरा।

जी उठा मरने से वह, जिसकी ख़ुदा पर थी नज़र,
जिसने दुनिया ही को पाया था, वह सब खो के मरा।

था लगा रूह पै, ग़फ़लत से दुई का धब्बा,
था वही सूफ़िये-साफ़ी जो उसे धो के मरा।

[(ग़फ़लत = असावधानी, बेपरवाही ) , (सूफ़िये-साफ़ी = ब्रह्मज्ञानी/ शुद्ध करने वाला)]

-अकबर इलाहाबादी
 

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