काफ़ी है अर्ज़े-ग़म के लिए मुज़महिल हँसी,
रो-रो के इश्क़ को न तमाशा बनाइए ।
[(अर्ज़े-ग़म = ग़म का बयान), (मुज़महिल = शिथिल, थकी हुई)]
बेमौत मार डालेंगी ये होशमन्दियाँ,
जीने की आरज़ू है तो धोके भी खाइए ।
(होशमंदी = अकलमंदी)
-खुमार बाराबंकवी
रो-रो के इश्क़ को न तमाशा बनाइए ।
[(अर्ज़े-ग़म = ग़म का बयान), (मुज़महिल = शिथिल, थकी हुई)]
बेमौत मार डालेंगी ये होशमन्दियाँ,
जीने की आरज़ू है तो धोके भी खाइए ।
(होशमंदी = अकलमंदी)
-खुमार बाराबंकवी
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