Sunday, April 7, 2013

काफ़ी है अर्ज़े-ग़म के लिए मुज़महिल हँसी,
रो-रो के इश्क़ को न तमाशा बनाइए ।

[(अर्ज़े-ग़म = ग़म का बयान), (मुज़महिल  = शिथिल, थकी हुई)]

बेमौत मार डालेंगी ये होशमन्दियाँ,
जीने की आरज़ू है तो धोके भी खाइए ।

(होशमंदी = अकलमंदी)

-खुमार बाराबंकवी

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