Tuesday, April 9, 2013

हम कुश्तगाने-ख़्वाब गिराँगोश ही रहे,
सूरज सरों पे वक़्ते-सहर बोलता रहा ।

[(कुश्तगाने-ख़्वाब = नींद के मारे हुए/ सपनों की दुनिया में खोए हुए), (गिराँगोश = बहरे), (वक़्ते-सहर = सुबह के समय)]

उस राहे-जज़्ब से भी गुज़रना पड़ा 'ज़हीर',
जिस राह में ख़िरद का क़दम डोलता रहा।

(राहे-जज़्ब = आकर्षण की राह), (ख़िरद = बुद्धि)


-ज़हीर काश्मीरी

No comments:

Post a Comment