Friday, April 19, 2013

मर के टूटा है कहीं सिलसिलाए-क़ैदे-हयात,
मगर इतना है कि ज़ंजीर बदल जाती है ।
-फ़ानी बदायूनी

(सिलसिलाए-क़ैदे-हयात = ज़िन्दगी रुपी क़ैद का सिलसिला)

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