पुकारे आँख में चढ़कर तो खूँ को खूँ समझता है
अँधेरा किस को कहते हैं ये बस जुगनू समझता है
हमें तो चाँद-तारों में भी तेरा रूप दिखता है
मुहब्बत में नुमाईश को अदाएँ तू समझता है
मेरा प्रतिमान आँसूं में भिगो कर गढ़ लिया हॊता
अकिंचन पाँव तब आगे तुम्हारा बढ़ लिया हॊता
मेरी आँखों में भी अंकित समर्पण की ऋचाएँ थीं
उन्हें कुछ अर्थ मिल जाता जो तुमने पढ़ लिया होता
जहाँ हर दिन सिसकना है जहाँ हर रात गाना है
हमारी ज़िन्दगी भी एक तवायफ़ का घराना है
बहुत मजबूर हो कर गीत रोटी के लिखे मैंने
तुम्हारी याद का क्या है उसे तो रोज़ आना है
कहीं पर जग लिए तुम बिन, कहीं पर सो लिए तुम बिन
भरी महफ़िल मे भी अक्सर, अकेले हो लिए तुम बिन
ये पिछले चंद बरसों की, कमाई साथ हैमेरे
कभी तो हंस लिए तुम बिन, कभी तो रो लिए तुम बिन
बतायें क्या हमें किन किन सहारों ने सताया है
नदी तो कुछ नहीं बोली किनारों ने सताया है
सलासे शूल मेरी राह से खुद हट गये लेकिन
मुझे तो हर घड़ी हर पल बहारों ने सताया है
किसी के दिल की मायूसी जहाँ से होके गुज़री है,
हमारी सारी चालाकी वहीं पे खो के गुज़री है
तुम्हारी और हमारी रात में बस फर्क इतना है
तुम्हारी सो के गुजरी है हमारी रो के गुज़री है
अगर दिल ही मुअज्ज़न हो सदायें काम आती हैं (मुअज्ज़न = जो मसजिद के ऊपर अज़ान देता है)
समन्दर में सभी माफिक हवायें काम आती हैं
मुझे आराम है ये दोस्तों की मेहरबानी है
दुआयें साथ हों तो सब दवायें काम आतीं है
तुम्हीं पे मरता है ये दिल अदावत क्यों नहीं करता
कई जन्मों से बंदी है बगावत क्यों नहीं करता
कभी तुमसे थी जो वो ही शिकायत है ज़माने से
मेरी तारीफ करता है मुहब्बत क्यों नही करता
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है
ये तेरा दिल समझता है, या मेरा दिल समझता है
बदलने को तो इन आँखों के मंज़र कम नहीं बदले
तुम्हारी याद के मौसम, हमारे ग़म नहीं बदले
तुम अगले जन्म में हमसे मिलोगी तब तो मानोगी
ज़माने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदले
मुहब्बत एक एहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है
यहाँ सब लोग कहते हैं मेरी आँखों में आंसू हैं
जो तू समझे तो मोती हैं, जो न समझे तो पानी है
बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन
मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तन चंदन
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन
इस उड़ान पर अब शर्मिंदा मैं भी हूँ और तू भी है
आसमान से गिरा परिंदा मैं भी हूँ और तू भी है
छूट गई रस्ते में जीने मरने की सारी कसमें
अपने-अपने हाल में जिंदा मैं भी हूँ और तू भी है
खुशहाली में इक बदहाली मैं भी हूँ और तू भी है
हर निगाह पर एक सवाली मैं भी हूँ और तू भी है
दुनियाँ कुछ भी अर्थ लगाए हम दोनों को मालूम है
भरे - भरे पर खाली - खाली मैं भी हूँ और तू भी है
जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल एक ऐसा इकतारा है
जो हमको भी प्यारा है और, जो तुमको भी प्यारा है
झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर
तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है
जो धरती से अम्बर जोड़े , उसका नाम मोहब्बत है
जो शीशे से पत्थर तोड़े , उसका नाम मोहब्बत है
कतरा कतरा सागर तक तो ,जाती है हर उमर मगर
बहता दरिया वापस मोड़े , उसका नाम मोहब्बत है
-डॉ. कुमार विश्वास
अँधेरा किस को कहते हैं ये बस जुगनू समझता है
हमें तो चाँद-तारों में भी तेरा रूप दिखता है
मुहब्बत में नुमाईश को अदाएँ तू समझता है
मेरा प्रतिमान आँसूं में भिगो कर गढ़ लिया हॊता
अकिंचन पाँव तब आगे तुम्हारा बढ़ लिया हॊता
मेरी आँखों में भी अंकित समर्पण की ऋचाएँ थीं
उन्हें कुछ अर्थ मिल जाता जो तुमने पढ़ लिया होता
जहाँ हर दिन सिसकना है जहाँ हर रात गाना है
हमारी ज़िन्दगी भी एक तवायफ़ का घराना है
बहुत मजबूर हो कर गीत रोटी के लिखे मैंने
तुम्हारी याद का क्या है उसे तो रोज़ आना है
कहीं पर जग लिए तुम बिन, कहीं पर सो लिए तुम बिन
भरी महफ़िल मे भी अक्सर, अकेले हो लिए तुम बिन
ये पिछले चंद बरसों की, कमाई साथ हैमेरे
कभी तो हंस लिए तुम बिन, कभी तो रो लिए तुम बिन
बतायें क्या हमें किन किन सहारों ने सताया है
नदी तो कुछ नहीं बोली किनारों ने सताया है
सलासे शूल मेरी राह से खुद हट गये लेकिन
मुझे तो हर घड़ी हर पल बहारों ने सताया है
किसी के दिल की मायूसी जहाँ से होके गुज़री है,
हमारी सारी चालाकी वहीं पे खो के गुज़री है
तुम्हारी और हमारी रात में बस फर्क इतना है
तुम्हारी सो के गुजरी है हमारी रो के गुज़री है
अगर दिल ही मुअज्ज़न हो सदायें काम आती हैं (मुअज्ज़न = जो मसजिद के ऊपर अज़ान देता है)
समन्दर में सभी माफिक हवायें काम आती हैं
मुझे आराम है ये दोस्तों की मेहरबानी है
दुआयें साथ हों तो सब दवायें काम आतीं है
तुम्हीं पे मरता है ये दिल अदावत क्यों नहीं करता
कई जन्मों से बंदी है बगावत क्यों नहीं करता
कभी तुमसे थी जो वो ही शिकायत है ज़माने से
मेरी तारीफ करता है मुहब्बत क्यों नही करता
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है
ये तेरा दिल समझता है, या मेरा दिल समझता है
बदलने को तो इन आँखों के मंज़र कम नहीं बदले
तुम्हारी याद के मौसम, हमारे ग़म नहीं बदले
तुम अगले जन्म में हमसे मिलोगी तब तो मानोगी
ज़माने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदले
मुहब्बत एक एहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है
यहाँ सब लोग कहते हैं मेरी आँखों में आंसू हैं
जो तू समझे तो मोती हैं, जो न समझे तो पानी है
बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन
मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तन चंदन
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन
इस उड़ान पर अब शर्मिंदा मैं भी हूँ और तू भी है
आसमान से गिरा परिंदा मैं भी हूँ और तू भी है
छूट गई रस्ते में जीने मरने की सारी कसमें
अपने-अपने हाल में जिंदा मैं भी हूँ और तू भी है
खुशहाली में इक बदहाली मैं भी हूँ और तू भी है
हर निगाह पर एक सवाली मैं भी हूँ और तू भी है
दुनियाँ कुछ भी अर्थ लगाए हम दोनों को मालूम है
भरे - भरे पर खाली - खाली मैं भी हूँ और तू भी है
जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल एक ऐसा इकतारा है
जो हमको भी प्यारा है और, जो तुमको भी प्यारा है
झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर
तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है
जो धरती से अम्बर जोड़े , उसका नाम मोहब्बत है
जो शीशे से पत्थर तोड़े , उसका नाम मोहब्बत है
कतरा कतरा सागर तक तो ,जाती है हर उमर मगर
बहता दरिया वापस मोड़े , उसका नाम मोहब्बत है
-डॉ. कुमार विश्वास
i like the style of kumar vishwas.
ReplyDeleteand thankful to you ....kumar vishwas ki itni saari rachnaaye padh aur sun paayi...
sp
like the style of kumar vishwas.
ReplyDeleteand thankful to you ....kumar vishwas ki itni saari rachnaaye padh aur sun paayi...
SP