Wednesday, May 29, 2013

कभी तो आसमां से चाँद उतारे जाम हो जाए
तुम्हारे नाम की इक खूबसूरत शाम हो जाए
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,
ना जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
-बशीर बद्र


रहा करता है खटका की जाने क्या अंजाम हो जाए
खबर ये आम हो जाए तो कोहराम हो जाए
मुहब्बत हो गयी है डाकू सुल्ताना की बेटी से,
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाए
-पौपुलर मेरठी

No comments:

Post a Comment