Wednesday, May 29, 2013

कह दो हसरतों से कहीं और जा बसे, इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दागदार में,
उम्र-ए-दराज़ से मांग कर लाये थे चार दिन, दो आरज़ू में कट गए दो  इंतज़ार में
-बहादुर शाह ज़फ़र


महबूब वादा कर के भी आया न दोस्तों, क्या क्या किया न हम ने यहाँ उसके प्यार में
मुर्गे चुरा के लाये थे चार 'पौपुलर' , दो आरज़ू में कट गए दो इंतज़ार में
-पौपुलर मेरठी

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