Monday, May 20, 2013

मैं ख़ुद भी सोचता हूँ ये क्या मेरा हाल है
जिसका जवाब चाहिए वो क्या सवाल है

घर से चला तो दिल के सिवा पास कुछ न था
क्या मुझसे खो गया है मुझे क्या मलाल है

(मलाल = दुःख, उदासी)

आसूदगी से दिल के सभी दाग़ धुल गए
लेकिन वो कैसे जाए जो शीशे में बाल है

(आसूदगी = संतोष, तृप्ति, ख़ुशहाली)

बे-दस्त-ओ-पा हूँ आज तो इल्ज़ाम किसको दूँ
कल मैंने ही बुना था ये मेरा ही जाल है

(बे-दस्त-ओ-पा = मजबूर, नि:सहाय)

फ़िर कोई ख़्वाब देखूँ, कोई आरज़ू करूँ
अब ऐ दिले-तबाह तिरा क्या ख़याल है

(दिले-तबाह = बरबाद दिल)

-जावेद अख़्तर

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