Sunday, May 5, 2013

दिखाई दिए यूं कि बेख़ुद किया, हमें आप से भी जुदा कर चले

फ़कीराना आए सदा कर चले,
मियाँ खुश रहो हम दुआ कर चले।

(सदा = आवाज़)

मीर साहब फरमाते हैं कि मैंने फ़क़ीरों  की तरह ज़िन्दगी जी और सब ख़ुशी से रहें इसकी दुआ की।

जो तुझ बिन न जीने को कहते थे हम,
सो इस अहद को अब वफ़ा कर चले।

(अहद = प्रतिज्ञा, वचन)

तुम्हारे साथ जीने मरने की प्रतिज्ञा का पालन कर रहा हूँ ।

कोई ना-उम्मीदाना करते निगाह,
सो तुम हम से मुँह भी छिपा कर चले।

जब तुम आए तब कम से कम मेरी ओर नज़रें तो उठाते, भले ही वो उम्मीद भरी न होतीं। मगर तुम तो  मुँह भी छिपा कर चले गए।

बहुत आरज़ू थी गली की तेरी,
सो याँ से लहू में नहा कर चले ।

तुमसे मिलने की इच्छा इतनी प्रबल थी कि रगों में बहते खून की लाली सारे शरीर में दौड़ने लगी।

दिखाई दिए यूं कि बेख़ुद किया,
हमें आप से भी जुदा कर चले ।

तुम्हें देखकर मैं इतना मदहोश हो गया हूँ की अब मुझे ख़ुद की ख़बर भी नहीं, और मैं अपने आप से भी अलग हो गया हूँ।

ज़बीं सजदा करते ही करते गई,
हक़-ऐ-बंदगी हम अदा कर चले ।

[(ज़बीं = माथा, मस्तक), (सजदा = माथा टेकना, सर झुकाना)]

तेरे सामने मैं बस माथा टेकता ही रहा और मुझे संतोष है के मैंने अपनी प्रार्थना/ सेवा का कर्तव्य निभाया।

परस्तिश की याँ तक कि ऐ बुत तुझे,
नज़र में सभू की ख़ुदा कर चले ।

[(परस्तिश = पूजा, आराधना), (सभू = सभी)]

मैंने इतनी शिद्दत से तेरी पूजा की, कि सब लोग तुझे ईश्वर का रूप मानने लगे।

गई उम्र दर बंदऐ-फ़िक्र-ऐ-ग़ज़ल,
सो इस फ़न को ऐसा बड़ा कर चले ।

सारी उम्र ग़ज़ल लिखने की फ़िक्र में चली गई, और आज ये मेहनत रंग ला रही है। 

कहें क्या जो पूछे कोई हम से 'मीर',
जहाँ में तुम आए थे, क्या कर चले।

Purpose of life - अगर कोई पूछे कि इस दुनिया में तुम क्या करने आये थे और क्या कर रहे हो तो हम क्या जवाब देंगे?

-मीर तक़ी मीर





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