मुझमे रहता है कोई दुश्मन-ए-जानी मेरा, खुद से तन्हाई में मिलते हुए डर लगता है
ज़िंदगी तूने कब्र से कम दी है ज़मीन, पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है
-बशीर बद्र
कितनी कंजूसी पे आमादा है ससुराल मेरी, रात की बात बताते हुए डर लगता है
ऐसे कमरे में सुला देते हैं साले मुझको , पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है
-पौपुलर मेरठी
ज़िंदगी तूने कब्र से कम दी है ज़मीन, पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है
-बशीर बद्र
कितनी कंजूसी पे आमादा है ससुराल मेरी, रात की बात बताते हुए डर लगता है
ऐसे कमरे में सुला देते हैं साले मुझको , पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है
-पौपुलर मेरठी
No comments:
Post a Comment