Thursday, May 30, 2013

जब कभी कश्ती मिरी सैलाब में आ जाती है
मां दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है

रोज़ मैं अपने लहू से उसे ख़त लिखता हूं
रोज़ उंगली मिरी तेज़ाब में आ जाती है

दिल की गलियों से तिरी याद निकलती ही नहीं
सोहनी फिर इसी पंजाब में आ जाती है

रात भर जागते रहने का सिला है शायद
तेरी तस्वीर-सी महताब में आ जाती है

(महताब = चाँद)

एक कमरे में बसर करता है सारा कुनबा
सारी दुनिया दिले- बेताब में आ जाती है

ज़िन्दगी तू भी भिखारिन की रिदा ओढ़े हुए
कूचा - ए - रेशमो - किमख़्वाब में आ जाती है

(रिदा = चादर)

दुख किसी का हो छलक उठती हैं मेरी आँखें
सारी मिट्टी मिरे तालाब में आ जाती है

-मुनव्वर राना

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