Tuesday, May 28, 2013

प्यास की कैसे लाए ताब कोई
नहीं दरिया तो हो सराब कोई

[(ताब = सहनशक्ति), (सराब = मृगतृष्णा)]

ज़ख़्म दिल में जहाँ महकता है
इसी क्यारी में था गुलाब कोई

रात बजती थी दूर शहनाई
रोया पीकर बहुत शराब कोई

दिल को घेरे हैं रोज़गार के ग़म
रद्दी मे खो गई किताब कोई

कौन-सा ज़ख़्म किसने बख़्शा है
इसका रक्खे कहाँ हिसाब कोई

(बख़्शा = प्रदान किया)

फ़िर मैं सुनने लगा हूँ इस दिल की
आने वाला है फिर अज़ाब कोई

(अज़ाब = दुख, कष्ट, संकट)

शब की दहलीज़ पर शफ़क़ है लहू
फ़िर हुआ क़त्ल आफ़्ताब कोई

[(शब = रात), (दहलीज़ = चौखट), (शफ़क़ = क्षितिज की लालिमा), (आफ़्ताब = सूरज)]

-जावेद अख़्तर

No comments:

Post a Comment