Thursday, December 19, 2013

देख रहा है दरिया भी हैरानी से
मैंने कैसे पार किया आसानी से

नदी किनारे पहरों बैठा रहता हूँ
कुछ रिश्ता है मेरा बहते पानी से

हर कमरे से धूप हवा की यारी थी
घर का नक्शा बिगड़ा है मनमानी से

अब जंगल में चैन से सोया करता हूँ
डर लगता था बचपन में वीरानी से

दिल पागल है रोज़ पशीमाँ होता है
फिर भी बाज़ नहीं आता मनमानी से

अपना फ़र्ज़ निभाना एक इबादत है
आलम, हम ने सीखा इक जापानी से
-आलम खुर्शीद

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