Wednesday, January 1, 2014

एक अजब सी दुनिया देखा करता था
दिन में भी मैं सपना देखा करता था

एक ख्यालाबाद था मेरे दिल में भी
खुद को मैं शहजादा देखा करता था

सब्ज़ परी का उड़नखटोला हर लम्हे
अपनी जानिब आता देखा करता था

उड़ जाता था रूप बदलकर चिड़ियों के
जंगल सेहरा दरिया देखा करता था

हीरे जैसा लगता था इक-इक कंकर
हर मिट्टी में सोना देखा करता था

कोई नहीं था प्यासा रेगिस्तानो में
हर सहरा में दरिया देखा करता था

हर जानिब हरियाली थी ख़ुशहाली थी
हर चेहरे को हँसता देखा करता था

बचपन के दिन कितने अच्छे होते हैं
सब कुछ ही मैं अच्छा देखा करता था

आँख खुली तो सारे मंज़र ग़ायब हैं
बंद आँखों से क्या-क्या देखा करता था
-आलम खुर्शीद

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