Sunday, January 12, 2014

जब तक एक विवाद रहा मैं
तब तक ही आबाद रहा मैं

महलों के लफ़्फ़ाज कंगूरे
गूँगी सी बुनियाद रहा मैं

काल पात्र में जिक्र नहीं था
लेकिन सबको याद रहा मैं

उनकी सब परिभाषाओं में
एक प्रखर अपवाद रहा मैं

शब्दों के उस कोलाहल में
अनबोला संवाद रहा मैं
-विज्ञान व्रत 

No comments:

Post a Comment