Wednesday, January 15, 2014

जैसे बाज़ परिन्दों में
मेरा क़ातिल अपनों में

अब इंसानी रिश्ते हैं
सिर्फ़ कहानी-किस्सों में

पढ़ना-लिखना सीखा तो
अब हूँ बंद क़िताबों में

मौसम को महसूस करूँ
ख़बरों से अख़बारों में

मेरे पैर ज़मीं पर हैं
ख़ुद हूँ चांद-सितारों में!

-विज्ञान व्रत

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