उम्र सफ़र में गुज़री लेकिन शौके-सियाह्त बाकी है
कोई मुसाफ़त खत्म हुई है कोई मुसाफ़त बाकी है
(शौके-सियाह्त = यात्रा की इच्छा), (मुसाफ़त = दूरी, अंतर)
ऐसे बहुत से रस्ते हैं जो रोज़ पुकारा करते हैं
कई मनाज़िल सर करने की अब तक चाहत बाकी है
[(मनाज़िल = मंज़िल का बहुवचन, बहुत सारी मंज़िलें), (सर = जीतना)]
एक सितारा हाथ पकड़ कर दूर कहीं ले जाता है
रोज़ गगन में खो जाने की अबतक आदत बाकी है
चश्मे-बसीरत कुछ तो बता दे कब वो लम्हे आयेंगे
जिन की खातिर इन आँखों में इतनी बसारत बाकी है
[(चश्मे-बसीरत = ज्ञानचक्षु), (बसारत = देखने की शक्ति, दृष्टि)]
ख़त्म कहानी हो जाती तो नींद मुझे भी आ जाती
कोई फ़साना भूल गया हूँ कोई हिकायत बाकी है
[(फ़साना = मन से गढ़ा हुआ किस्सा), (हिकायत = कहानी, किस्सा)]
दुनिया के ग़म फ़ुर्सत दें तो दिल के तक़ाज़े पूरे हों
कूचा-ए-जानां! तेरी भी तो सैर-ओ-सियाहत बाकी है
[(कूचा-ए-जानां = प्रेमिका की गली), (सियाहत = यात्रा)]
शहरे-तमन्ना! बाज़ आया मैं तेरे नाज़ उठाने से
एक शिकायत दूर करूँ तो एक शिकायत बाक़ी है
(शहरे-तमन्ना = कामना/ इच्छा/ ख़्वाहिश रखने वालों की बस्ती)
एक जरा सी उम्र में 'आलम ' कहाँ कहाँ की सैर करूँ
जाने मेरे हिस्से में अब कितनी मुहलत बाकी है
(मुहलत = अवकाश, फ़ुर्सत)
-आलम खुर्शीद
कोई मुसाफ़त खत्म हुई है कोई मुसाफ़त बाकी है
(शौके-सियाह्त = यात्रा की इच्छा), (मुसाफ़त = दूरी, अंतर)
ऐसे बहुत से रस्ते हैं जो रोज़ पुकारा करते हैं
कई मनाज़िल सर करने की अब तक चाहत बाकी है
[(मनाज़िल = मंज़िल का बहुवचन, बहुत सारी मंज़िलें), (सर = जीतना)]
एक सितारा हाथ पकड़ कर दूर कहीं ले जाता है
रोज़ गगन में खो जाने की अबतक आदत बाकी है
चश्मे-बसीरत कुछ तो बता दे कब वो लम्हे आयेंगे
जिन की खातिर इन आँखों में इतनी बसारत बाकी है
[(चश्मे-बसीरत = ज्ञानचक्षु), (बसारत = देखने की शक्ति, दृष्टि)]
ख़त्म कहानी हो जाती तो नींद मुझे भी आ जाती
कोई फ़साना भूल गया हूँ कोई हिकायत बाकी है
[(फ़साना = मन से गढ़ा हुआ किस्सा), (हिकायत = कहानी, किस्सा)]
दुनिया के ग़म फ़ुर्सत दें तो दिल के तक़ाज़े पूरे हों
कूचा-ए-जानां! तेरी भी तो सैर-ओ-सियाहत बाकी है
[(कूचा-ए-जानां = प्रेमिका की गली), (सियाहत = यात्रा)]
शहरे-तमन्ना! बाज़ आया मैं तेरे नाज़ उठाने से
एक शिकायत दूर करूँ तो एक शिकायत बाक़ी है
(शहरे-तमन्ना = कामना/ इच्छा/ ख़्वाहिश रखने वालों की बस्ती)
एक जरा सी उम्र में 'आलम ' कहाँ कहाँ की सैर करूँ
जाने मेरे हिस्से में अब कितनी मुहलत बाकी है
(मुहलत = अवकाश, फ़ुर्सत)
-आलम खुर्शीद
एक सितारा हाथ ...........
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया जोशीजी
ऐसे बहुत से रस्ते.......
ReplyDeleteTooo gooooooooood