Thursday, May 29, 2014

शोला हूँ भड़कने की गुज़ारिश नहीं करता
सच मुंह से निकल जाता है कोशिश नहीं करता

गिरती हुई दीवार का हमदर्द हूँ लेकिन
चढ़ते हुए सूरज की परस्तिश नहीं करता

माथे के पसीने की महक आये ना जिस से
वो ख़ून मेरे जिस्म में गर्दिश नहीं करता

हम्दर्दी-ए-अहबाब से डरता हूँ 'मुज़फ़्फ़र'
मैं ज़ख़्म तो रखता हूँ नुमाइश नहीं करता

[(अहबाब = स्वजन, दोस्त, मित्र), (हम्दर्दी-ए-अहबाब =  दोस्तों की सहानुभूति)]

-मुज़फ़्फ़र वारसी


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