Saturday, August 16, 2014

चन्द सिक्के दिखा रहे हो क्या
तुम मुझे आज़मा रहे हो क्या ?

मैं सिपाही हूँ कोई नेता नहीं
मेरी क़ीमत लगा रहे हो क्या ?

शहर लेता है इम्तिहान कई
लौटकर गाँव जा रहे हो क्या ?

फिर चली गोलियाँ उधर से जनाब
फिर कबूतर उड़ा रहे हो क्या ?

पत्रकारों ! ये ख़ामुशी कैसी
चापलूसी की खा रहे हो क्या ?

-आशीष नैथानी 'सलिल'

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