चन्द सिक्के दिखा रहे हो क्या
तुम मुझे आज़मा रहे हो क्या ?
मैं सिपाही हूँ कोई नेता नहीं
मेरी क़ीमत लगा रहे हो क्या ?
शहर लेता है इम्तिहान कई
लौटकर गाँव जा रहे हो क्या ?
फिर चली गोलियाँ उधर से जनाब
फिर कबूतर उड़ा रहे हो क्या ?
पत्रकारों ! ये ख़ामुशी कैसी
चापलूसी की खा रहे हो क्या ?
-आशीष नैथानी 'सलिल'
तुम मुझे आज़मा रहे हो क्या ?
मैं सिपाही हूँ कोई नेता नहीं
मेरी क़ीमत लगा रहे हो क्या ?
शहर लेता है इम्तिहान कई
लौटकर गाँव जा रहे हो क्या ?
फिर चली गोलियाँ उधर से जनाब
फिर कबूतर उड़ा रहे हो क्या ?
पत्रकारों ! ये ख़ामुशी कैसी
चापलूसी की खा रहे हो क्या ?
-आशीष नैथानी 'सलिल'
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