Monday, August 25, 2014

ये मोजज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाये मुझे
कि संग तुझपे गिरे और ज़ख़्म आये मुझे

(मोजज़ा =चमत्कार), (संग = पत्थर)

वो मेहरबाँ है तो इक़रार क्यूँ नहीं करता
वो बदगुमाँ है तो सौ बार आज़माये मुझे

(बदगुमाँ = जिसके मन में किसी के प्रति सन्देह उत्पन्न हुआ हो)

मैं अपने पाँव तले रौंदता हूँ साये को
बदन मेरा ही सही दोपहर न भाये मुझे

मैं घर से तेरी तमन्ना पहन के जब निकलूँ
बरहना शहर में कोई नज़र न आये मुझे

(बरहना = नग्न, विवस्त्र),

वो मेरा दोस्त है सारे जहाँ को है मालूम
दग़ा करे वो किसी से तो शर्म आये मुझे

मैं अपनी ज़ात में नीलाम हो रहा हूँ "क़तील"
ग़म-ए-हयात से कह दो ख़रीद लाये मुझे

(ग़म-ए-हयात = जीवन का दुःख)

-क़तील शिफाई



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