ये मोजज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाये मुझे
कि संग तुझपे गिरे और ज़ख़्म आये मुझे
(मोजज़ा =चमत्कार), (संग = पत्थर)
वो मेहरबाँ है तो इक़रार क्यूँ नहीं करता
वो बदगुमाँ है तो सौ बार आज़माये मुझे
(बदगुमाँ = जिसके मन में किसी के प्रति सन्देह उत्पन्न हुआ हो)
मैं अपने पाँव तले रौंदता हूँ साये को
बदन मेरा ही सही दोपहर न भाये मुझे
मैं घर से तेरी तमन्ना पहन के जब निकलूँ
बरहना शहर में कोई नज़र न आये मुझे
(बरहना = नग्न, विवस्त्र),
वो मेरा दोस्त है सारे जहाँ को है मालूम
दग़ा करे वो किसी से तो शर्म आये मुझे
मैं अपनी ज़ात में नीलाम हो रहा हूँ "क़तील"
ग़म-ए-हयात से कह दो ख़रीद लाये मुझे
(ग़म-ए-हयात = जीवन का दुःख)
-क़तील शिफाई
कि संग तुझपे गिरे और ज़ख़्म आये मुझे
(मोजज़ा =चमत्कार), (संग = पत्थर)
वो मेहरबाँ है तो इक़रार क्यूँ नहीं करता
वो बदगुमाँ है तो सौ बार आज़माये मुझे
(बदगुमाँ = जिसके मन में किसी के प्रति सन्देह उत्पन्न हुआ हो)
मैं अपने पाँव तले रौंदता हूँ साये को
बदन मेरा ही सही दोपहर न भाये मुझे
मैं घर से तेरी तमन्ना पहन के जब निकलूँ
बरहना शहर में कोई नज़र न आये मुझे
(बरहना = नग्न, विवस्त्र),
वो मेरा दोस्त है सारे जहाँ को है मालूम
दग़ा करे वो किसी से तो शर्म आये मुझे
मैं अपनी ज़ात में नीलाम हो रहा हूँ "क़तील"
ग़म-ए-हयात से कह दो ख़रीद लाये मुझे
(ग़म-ए-हयात = जीवन का दुःख)
-क़तील शिफाई
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