Saturday, August 16, 2014

क्या हुआ कोशिश अगर ज़ाया गई
दोस्ती हमको निभानी आ गई |

(ज़ाया = बेकार, व्यर्थ)

बाँधकर रखता भला कैसे उसे
आज पिंजर तोड़कर चिड़िया गई |

चूड़ियों की खनखनाहट थी सुबह
शाम को लौटी तो घर तन्हा गई |

लहलहाते खेत थे कल तक यहाँ
आज माटी गाँव की पथरा गई |

कैस तुमको फ़ख्र हो माशूक पर
पत्थरों के बीच फिर लैला गई |

आज फिर आँखों में सूखा है 'सलिल'
ज़िन्दगी फिर से तुम्हें झुठला गई |

-आशीष नैथानी 'सलिल'

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