Tuesday, September 30, 2014

वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो के न याद हो
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो के न याद हो

वो नये गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो के न याद हो

(हिकायतें = कहानियाँ, किस्से)

कोई बात ऐसी अगर हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयाँ से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो के न याद हो

(बयाँ = वर्णन, ज़िक्र)

सुनो ज़िक्र है कई साल का, कोई वादा मुझ से था आप का
वो निभाने का तो ज़िक्र क्या, तुम्हें याद हो के न याद हो

कभी हम में तुम में भी चाह थी, कभी हम से तुम से भी राह थी
कभी हम भी तुम भी थे आश्ना, तुम्हें याद हो के न याद हो

(आश्ना = 1. मित्र/ दोस्त, 2. प्रेमी/ प्रेमिका 3. परिचित)

हुए इत्तेफ़ाक़ से गर बहम, वो वफ़ा जताने को दम-ब-दम
गिला-ए-मलामत-ए-अर्क़बा, तुम्हें याद हो के न याद हो

(बहम = एक जगह, परस्पर, आपस में)

वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे बेश्तर, वो करम के हाथ मेरे हाथ पर
मुझे सब हैं याद ज़रा ज़रा, तुम्हें याद हो के न याद हो

(बेश्तर = अधिकतर, प्रायः, बहुधा)

कभी बैठे सब हैं जो रू-ब-रू तो इशारतों ही से गुफ़्तगू
वो बयान शौक़ का बरमला तुम्हें याद हो के न याद हो

(इशारतों = इशारों या संकेतों), (बरमला = खुलेआम, सबके सामने)

वो बिगड़ना वस्ल की रात का, वो न मानना किसी बात का
वो नहीं नहीं की हर आन अदा, तुम्हें याद हो के न याद हो

[(वस्ल = मिलन), (हर आन = हर पल)]

जिसे आप गिनते थे आश्ना, जिसे आप कहते थे बावफ़ा
मैं वही हूँ 'मोमिन'-ए-मुब्तला तुम्हें याद हो के न याद हो

(आश्ना = 1. मित्र/ दोस्त, 2. प्रेमी/ प्रेमिका 3. परिचित), (मुब्तला  = फँसा हुआ, ग्रस्त)

-मोमिन खाँ 'मोमिन'










1 comment: