वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो के न याद हो
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो के न याद हो
वो नये गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो के न याद हो
(हिकायतें = कहानियाँ, किस्से)
कोई बात ऐसी अगर हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयाँ से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो के न याद हो
(बयाँ = वर्णन, ज़िक्र)
सुनो ज़िक्र है कई साल का, कोई वादा मुझ से था आप का
वो निभाने का तो ज़िक्र क्या, तुम्हें याद हो के न याद हो
कभी हम में तुम में भी चाह थी, कभी हम से तुम से भी राह थी
कभी हम भी तुम भी थे आश्ना, तुम्हें याद हो के न याद हो
(आश्ना = 1. मित्र/ दोस्त, 2. प्रेमी/ प्रेमिका 3. परिचित)
हुए इत्तेफ़ाक़ से गर बहम, वो वफ़ा जताने को दम-ब-दम
गिला-ए-मलामत-ए-अर्क़बा, तुम्हें याद हो के न याद हो
(बहम = एक जगह, परस्पर, आपस में)
वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे बेश्तर, वो करम के हाथ मेरे हाथ पर
मुझे सब हैं याद ज़रा ज़रा, तुम्हें याद हो के न याद हो
(बेश्तर = अधिकतर, प्रायः, बहुधा)
कभी बैठे सब हैं जो रू-ब-रू तो इशारतों ही से गुफ़्तगू
वो बयान शौक़ का बरमला तुम्हें याद हो के न याद हो
(इशारतों = इशारों या संकेतों), (बरमला = खुलेआम, सबके सामने)
वो बिगड़ना वस्ल की रात का, वो न मानना किसी बात का
वो नहीं नहीं की हर आन अदा, तुम्हें याद हो के न याद हो
[(वस्ल = मिलन), (हर आन = हर पल)]
जिसे आप गिनते थे आश्ना, जिसे आप कहते थे बावफ़ा
मैं वही हूँ 'मोमिन'-ए-मुब्तला तुम्हें याद हो के न याद हो
(आश्ना = 1. मित्र/ दोस्त, 2. प्रेमी/ प्रेमिका 3. परिचित), (मुब्तला = फँसा हुआ, ग्रस्त)
-मोमिन खाँ 'मोमिन'
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो के न याद हो
वो नये गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो के न याद हो
(हिकायतें = कहानियाँ, किस्से)
कोई बात ऐसी अगर हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयाँ से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो के न याद हो
(बयाँ = वर्णन, ज़िक्र)
सुनो ज़िक्र है कई साल का, कोई वादा मुझ से था आप का
वो निभाने का तो ज़िक्र क्या, तुम्हें याद हो के न याद हो
कभी हम में तुम में भी चाह थी, कभी हम से तुम से भी राह थी
कभी हम भी तुम भी थे आश्ना, तुम्हें याद हो के न याद हो
(आश्ना = 1. मित्र/ दोस्त, 2. प्रेमी/ प्रेमिका 3. परिचित)
हुए इत्तेफ़ाक़ से गर बहम, वो वफ़ा जताने को दम-ब-दम
गिला-ए-मलामत-ए-अर्क़बा, तुम्हें याद हो के न याद हो
(बहम = एक जगह, परस्पर, आपस में)
वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे बेश्तर, वो करम के हाथ मेरे हाथ पर
मुझे सब हैं याद ज़रा ज़रा, तुम्हें याद हो के न याद हो
(बेश्तर = अधिकतर, प्रायः, बहुधा)
कभी बैठे सब हैं जो रू-ब-रू तो इशारतों ही से गुफ़्तगू
वो बयान शौक़ का बरमला तुम्हें याद हो के न याद हो
(इशारतों = इशारों या संकेतों), (बरमला = खुलेआम, सबके सामने)
वो बिगड़ना वस्ल की रात का, वो न मानना किसी बात का
वो नहीं नहीं की हर आन अदा, तुम्हें याद हो के न याद हो
[(वस्ल = मिलन), (हर आन = हर पल)]
जिसे आप गिनते थे आश्ना, जिसे आप कहते थे बावफ़ा
मैं वही हूँ 'मोमिन'-ए-मुब्तला तुम्हें याद हो के न याद हो
(आश्ना = 1. मित्र/ दोस्त, 2. प्रेमी/ प्रेमिका 3. परिचित), (मुब्तला = फँसा हुआ, ग्रस्त)
-मोमिन खाँ 'मोमिन'
Fantastic...I really admire this...bhut sunder.
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