Saturday, September 27, 2014

कितनी राहत है दिल टूट जाने के बाद
ज़िंदगी से मिले मौत आने के बाद

लज़्ज़त-ए-सजदा-ए-संग-ए-दर क्या कहें
होश ही कब रहा सर झुकाने के बाद

(लज़्ज़त-ए-सजदा-ए-संग-ए-दर = पत्थर के दरवाज़े पर माथा टेकने का आनंद)

क्या हुआ हर मसर्रत अगर छिन गई
आदमी बन गया ग़म उठाने के बाद

(मसर्रत = हर्ष, आनंद, ख़ुशी)

रात का माजरा किससे पूछूँ 'शमीम'
क्या बनी बज़्म पर मेरे आने के बाद

[(माजरा  = हाल, वृत्तांत, घटना), (बज़्म = महफ़िल, सभा)]

-शमीम जयपुरी


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